जटायु होना न सहज है , न सरल है . और अधिकाँश लोग सीख भी नहीं सकते , क्योंकि उनकी उत्सुकता अपनी मंशा में होती है .... जैसे वह पूछेगा , सीता को कैसे पकड़ा था रावण ! या - मारा वारा भी क्या !! जटायु आदमी नहीं था न !!!
बचाव में जो हाथ या हथियार उठते हैं वह हिंसा नहीं होती , वह बस बचाव है.... पर अपशब्द .... वह एक गलित मानसिक हिंसा है , जिसे बचाव के उद्देश्य से भी नहीं करना चाहिए !
जब सोच की आंखे बरसने लगती हैं, सिसकियों से शब्द निकलते हैं तो लोग उसे कविता कहते हैं .. कभी प्यार आंखों को बोझिल कर देता है और होठों पर बेवक़्त की मुस्कान पन्नों पर शक्ल लेती है तो लोग उसे कविता कहते हैं ... जो भी कहो दिल को छू जाए और लोरी बन जाए, कुछ पल का सुकून बन जाए - उन शब्दों को खुदा कहते हैं .
मेरी ख़ामोशी ने तिल को ताड़ बना दिया चलनी ने सूप को निशाना बना लिया ! भयानक बेवाई की तकलीफ से सब गुजरे नस चढ़ने की वजह से मेरी चाल लड़खड़ाई तो सबके मुंह प्रश्नों से भर गए ... विप्पति में क्या मुझे ही पहचान देनी थी या पहचान उनकी भी ज़रूरी थी ख़ुशी हो या दुःख अपनों की पहचान हो ही जाती है मुंह में राम और बगल में छुरी हो तो नज़रें बार बार धोखा नहीं खातीं !
कृत्रिम निश्छलता से बस अपने फायदे का लेखा-जोखा करते हैं
और समाज सुधारक - विचारक बन जाते हैं !
- रश्मि प्रभा
बुधवार, 1 अगस्त 2012
आलोचना करना बहुत आसान है, प्रशंसा करने के लिए जि़गर होना चाहिए ...
- रश्मि प्रभा
सोमवार, 30 जुलाई 2012
बुद्धि, विवेक के साथ क्रोधयुक्त जिद हो तो ... तो होनी काहू बिधि न टरै
- रश्मि प्रभा
शुक्रवार, 27 जुलाई 2012
सत्य को कोई सह नहीं पाता - झूठ की बैसाखियों पर चलने वाले पांव इतने लाचार होते हैं कि यथार्थ की धरती पर खड़े नहीं हो सकते, जो सच सामने आता है, उसके पीछे कई सच होते हैं - जिनको न कोई सामने लाना चाहता है, न कोई सुनना चाहता है, अपनी डफली अपना राग उत्तम है.
- रश्मि प्रभा
बुधवार, 25 जुलाई 2012
कोई शुरूआत जब गलती से हो तो समझाने से बेहतर है
आप सामनेवाले की बात सुनें
उसके क्रोध को भी स्वीकार करें - तब अनचाहा नहीं होता