सोमवार, 24 दिसंबर 2012

चिंतन ...

जो मित्र के लिए, अपनों के लिए अपशब्‍द इस्‍तेमाल करे - 
उससे सम्‍बंध बनाये रखना आपको भी शक़ के घेरे में लाता है .... 
- रश्मि प्रभा

सोमवार, 17 दिसंबर 2012

चिंतन ...

जो अकबका कर तुमसे व्यक्तिगत बात कह जाये,
उसे किसी और से कहना तुम्हारे व्यक्तित्व को हल्का करता है ...

- रश्मि प्रभा 

शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

चिंतन ...

निहत्थे शक्तिहीन से युद्ध उचित नहीं - ऐसा शास्त्रों में कहा  है 
तो स्त्री के साथ जो अन्यायी युद्ध होता है , 
वह सिद्ध करता है कि उसमें अपार क्षमता है 
पति और बच्चों से बढकर कोई शस्त्र नहीं 
और यदि वह इन अवश्यम्भावी शस्त्रों से विहीन है 
तो इसके बगैर भी उसकी आत्मिक शक्ति उसके लिए शिव धनुष के समान है 
अबला ना वह कभी थी ना है ना होगी ...
- रश्मि प्रभा

मंगलवार, 27 नवंबर 2012

चिंतन ...

स्पेस की बात करते करते ...
इतना बड़ा स्पेस हो गया कि सब अकेले हो गए !

- रश्मि प्रभा 

शनिवार, 24 नवंबर 2012

चिंतन ...

खिलखिलाती हंसी की तलाश कैसी 
सन्नाटा ही चेहरे पर बाकी है , ये क्या कम है
- रश्मि प्रभा 

गुरुवार, 22 नवंबर 2012

चिंतन ...

किसी बात का पक्ष विपक्ष .. 
गहराई,उथलापन उस जमीन पर खड़े होकर ही जाना जा सकता है !

- रश्मि प्रभा 

सोमवार, 19 नवंबर 2012

चिंतन ...

गलती इन्गित न करके खुद को ही गलत मान लो,
साथ में क्षमा भी माँग लो 
तो सामनेवाला भस्मासुर बन जाता है ...
 
- रश्मि प्रभा 
 

शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

चिंतन ...

प्रशंसनीय शब्दों से परे एक सच .... 
डरा हुआ आदमी बहुत अच्छा लिखता है !!

 - रश्मि प्रभा 

बुधवार, 7 नवंबर 2012

सोमवार, 5 नवंबर 2012

चिंतन ...

कविता - दिल दिमाग को छूती है और 
पूरे दिन,महीने,वर्षों की लहरों में तब्दील हो जाती है

- रश्मि प्रभा 

गुरुवार, 1 नवंबर 2012

चिंतन ..

अहंकार में प्रेम कहाँ ! 
प्रेम तर्कों में उलझ जाए,स्पष्टीकरण देने लगे-तो वह प्रेम होता ही नहीं. 
प्रेम करनेवाला अपनी अनुभूतियों को किसी कसौटी पर नहीं रखता !!

- रश्मि प्रभा


सोमवार, 29 अक्तूबर 2012

चिंतन ...

उच्श्रृंखल पहनावा, उत्तेजित करते परिधान को परिवर्तन नहीं कह सकते, 
बल्कि यह तो अस्तित्व को गुम करना है !

- रश्मि प्रभा 

गुरुवार, 25 अक्तूबर 2012

चिंतन

प्रेम शिव है,जो आदिशक्ति का भान कराये - वसुधैव कुटुम्बकम सोचे  
 स्व' प्रेम नहीं....वह मात्र वियोग है- खुद से,संसार से ...

- रश्मि प्रभा 

सोमवार, 22 अक्तूबर 2012

चिंतन ...

अच्छी बातों का प्रभाव अच्छा ही पड़े - यह ज़रूरी नहीं . 
अपने नज़रिए से लोग अच्छाई को आडम्बर भी कहते हैं !!!

- रश्मि प्रभा 

शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2012

चिंतन ...

काया-नश्वर
आत्मा-अमर

पर काया के भौतिक मोह में आत्मा हो जाती है नश्वर


- रश्मि प्रभा 

बुधवार, 17 अक्तूबर 2012

चिंतन ...

जो पल पल तुम्हारे ज़ख्म सहलाता है,साथ के नारे लगाता है - 
वह व्यक्ति अधिक खतरनाक होता है 

- रश्मि प्रभा 

सोमवार, 15 अक्तूबर 2012

चिंतन ...

न कोई आस्तिक,न नास्तिक-ईश्वर तो दोनों में है
स्वीकारो,नकारो- क्या फर्क पड़ता है 
एक तर्क तो एक कुतर्क 
एक प्राप्य तो दूसरा अप्राप्य का प्रतीक
कारण निर्धारित !

- रश्मि प्रभा 

शुक्रवार, 12 अक्तूबर 2012

चिंतन ...

माँ एक खाली कुआं है - जिसमें जीवन के सारे हल तैरते हैं 

- रश्मि प्रभा 


गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012

चिंतन ...

श्रेष्ठ वह है जो सच के साथ अडिग रहे .... 
छुपकर वार वही करते हैं जो झूठ की बैसाखियों पर होते हैं 

- रश्मि प्रभा 

मंगलवार, 9 अक्तूबर 2012

चिंतन ...

कोई भी व्यक्ति , घटनाक्रम, .... 
पूरी तरह तरह से सही नहीं होता , हो ही नहीं सकता - 
क्योंकि कहने सुनने समझने और लेने में अपनी सोच भी शामिल होती है....

- रश्मि प्रभा 

शुक्रवार, 5 अक्तूबर 2012

चिंतन ...

शब्द हमारी असलियत हैं ... 
असलियत यदि खो जाए  तो शब्द खुद ब खुद खोटे हो जाते हैं 

- रश्मि प्रभा 

बुधवार, 3 अक्तूबर 2012

चिंतन ...

बराबरी की चर्चा करते करते हमसब अपनी वास्तविक छवि से दूर हो गए. 
प्रश्न,समस्या से परे - तार्किक जिद्द ने 
दूसरी समस्या उत्पन्न कर दी है समाज में ... 
आधुनिकता - परिपक्व,दिशा निर्धारित सोच से संबंध रखती है, 
जो मार्ग अवरुद्ध कर दे उसे कपड़े और चाल से आधुनिकता नहीं कह सकते .

- रश्मि प्रभा

सोमवार, 1 अक्तूबर 2012

चिंतन ...


साथ चलते हुए बातें स्पष्ट हों - सही है, ज़रूरी भी .... 
पर हर रिश्ते में कुछ स्पेस होना चाहिए .

- रश्मि प्रभा 

शुक्रवार, 28 सितंबर 2012

चिंतन ...


जब हम सच कहते हैं तो यह क्यूँ कहते हैं कि 
'मेरा नाम ना आए' या बेनामी बनकर उतरते हैं - 
नकाब हो तो सच कैसा ! 

- रश्मि प्रभा 

बुधवार, 26 सितंबर 2012

चिंतन ...

जीवन में जो होता है , उससे व्यक्ति नाखुश रहता है 
जो नहीं होता उसके लिए बडबडाता रहता है ... 

- रश्मि प्रभा 

सोमवार, 24 सितंबर 2012

चिंतन ...

नारी - सीता भी , राधा , मीरा , सावित्री ...... भी 
नारी ही शूर्पनखा , पूतना , होलिका , मन्थरा ...... 
जब सीता के लिए हम लिखते हैं तो पूतना का विरोध - हास्यास्पद होगा न !

- रश्मि प्रभा 

शुक्रवार, 21 सितंबर 2012

चिंतन ...

किसी बात पर असहमति का अर्थ यह नहीं कि बम ही फोड़ा जाए ...
और बहरों के आगे बम फोड़ने से भी क्या हासिल होगा !

- रश्मि प्रभा 

बुधवार, 19 सितंबर 2012

सोमवार, 17 सितंबर 2012

चिंतन ...

सच क्या है ?
अदृश्य शक्ति , हिमालय, गंगा , फूलों की खुशबू , धरती, आकाश , सूरज , चाँद , सितारे .... सत्य को प्रमाण कैसा देना !
नालों के प्लावित होने से उन्हें गंगा नहीं कह सकते , मान लो तो भी - गंगा का क्या जाता है , वह तो है !!!
 
- रश्मि प्रभा 

शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

चिंतन ....

एक बात के कई मायने निकलते हैं ... 
अक्सर मुद्दे से अलग मायने ही सब उठाते हैं 
और फिर तल्खियों का बाज़ार गर्म हो उठता है!

- रश्मि प्रभा 

बुधवार, 12 सितंबर 2012

चिंतन ...

शून्य से गुजरकर शून्यता की भाषा जानोगे 
याददाश्त खोने सी स्थिति से भी वाकिफ होगे
परिस्थितियों की तुलना कर सकोगे .....
यूँ हीं कुछ मत कहो 
शून्य से मिलकर ही कहो 
शोर की परिधि से शून्य की व्याख्या 
संभव नहीं !
- रश्मि प्रभा 

सोमवार, 10 सितंबर 2012

चिंतन ...

माँ एक चुनौती है 
शिव का त्रिनेत्र 
गीता का ज्ञान 
कृष्ण की ऊँगली 
जिसपे है गोवर्धन अड़ा...  जीवन चुनौती है, ना हो चुनौती तो अपनी क्षमताओं से व्यक्ति अनभिज्ञ रहता है 

- रश्मि प्रभा

गुरुवार, 6 सितंबर 2012

चिंतन ...

कितना भी लिखो, कहो, दुहराओ... 
अनकही ही रह जाती है ज़िन्दगी !!!

- रश्मि प्रभा 

मंगलवार, 4 सितंबर 2012

चिंतन ...

जटायु होना न सहज है , न सरल है . और अधिकाँश लोग सीख भी नहीं सकते , क्योंकि उनकी उत्सुकता अपनी मंशा में होती है .... जैसे वह पूछेगा , सीता को कैसे पकड़ा था रावण ! या - मारा वारा भी क्या !! जटायु आदमी नहीं था न !!!

- रश्मि प्रभा 

शनिवार, 1 सितंबर 2012

चिंतन ....

श्रेष्ठ वह है जो सच के साथ अडिग रहे .... 
छुपकर वार वही करते हैं जो झूठ की बैसाखियों पर होते हैं  

- रश्मि प्रभा 

बुधवार, 29 अगस्त 2012

चितन ...

संत, धर्मात्मा .... उनके जीने की राह , उनका आशीष -
दिखावा , ईर्ष्या, कटुता , छल , हिंसा ,
भौतिकता की चमक दमक से दूर करता है
जो खुद लिप्त है - वह ज्ञानी हो सकता है ,
पर संत धर्मात्मा नहीं
और उसके अनुयायी तो ढकोसले से बढ़कर कुछ नहीं !!!
- रश्मि प्रभा 

सोमवार, 27 अगस्त 2012

चिंतन ...

बचाव में जो हाथ या हथियार उठते हैं वह हिंसा नहीं होती , वह बस बचाव है.... पर अपशब्द .... वह एक गलित मानसिक हिंसा है , जिसे बचाव के उद्देश्य से भी नहीं करना चाहिए ! 

- रश्मि प्रभा 

शनिवार, 25 अगस्त 2012

चिंतन ...

जब सोच की आंखे बरसने लगती हैं, सिसकियों से शब्‍द निकलते हैं तो लोग उसे कविता कहते हैं .. कभी प्‍यार आंखों को बोझिल कर देता है और होठों पर बेवक्‍़त की मुस्‍कान पन्‍नों पर शक्‍ल लेती है तो लोग उसे कविता कहते हैं ...  जो भी कहो दिल को छू जाए और लोरी बन जाए, कुछ पल का सुकून बन जाए - उन शब्‍दों को खुदा कहते हैं .

-रश्मि प्रभा

गुरुवार, 23 अगस्त 2012

चिंतन ...

मेरी ख़ामोशी ने 
तिल को ताड़ बना दिया 

चलनी ने सूप को निशाना बना लिया !

भयानक बेवाई की तकलीफ से सब गुजरे 

नस चढ़ने की वजह से 

मेरी चाल लड़खड़ाई 

तो सबके मुंह प्रश्नों से भर गए ...

विप्पति में क्या मुझे ही पहचान देनी थी 

या पहचान उनकी भी ज़रूरी थी 

ख़ुशी हो या दुःख 

अपनों की पहचान हो ही जाती है 

मुंह में राम और बगल में छुरी हो 

तो नज़रें बार बार धोखा नहीं खातीं !

- रश्मि प्रभा 

मंगलवार, 21 अगस्त 2012

चिंतन ...

कोई भी व्‍यक्ति सिर्फ वह नहीं होता जो रंगमंच पर उतरता है,
अनुरोध पर गानेवाला ज़रूरी नहीं कि उस वक्‍़त गाने की स्थिति में हो ... 
इसे समझनेवाले बिरले होते हैं 

- रश्मि प्रभा

शनिवार, 18 अगस्त 2012

चिंतन ...

जाने सच किस कोने में बैठा है होठों पर पपड़ी लिए, 
झूठ की मशालें इतनी जला दी गईं कि सच के फ़फोले डराने लगे ... 

- रश्मि प्रभा 

गुरुवार, 16 अगस्त 2012

चिंतन ...

प्रश्‍न कई सोच देते हैं ...  बनाये गए उत्तर तो सब जानते है, 
पर उन बने बनाये उत्तरों से परे भी कोई पहलू होता है ...

- रश्मि प्रभा

सोमवार, 13 अगस्त 2012

चिंतन ...

दिल के घुप्प रास्ते निर्णायक दिशा देते हैं ... 

- रश्मि प्रभा 

गुरुवार, 9 अगस्त 2012

चिंतन ...

मलबों के ढेर से कई अनुभव निकलते हैं और स्‍याह सन्‍नाटों में आकार लेते हैं ...

- रश्मि प्रभा

सोमवार, 6 अगस्त 2012

चिंतन ...

गुना़ह तो जनसंख्‍या की तरह बढ़ते हैं और सुकर्म बेटियों की तरह कभी भी कहीं भी खत्‍म कर दिए जाते हैं ... क्‍या हिसाब ! और क्‍या किताब !

- रश्मि प्रभा

शुक्रवार, 3 अगस्त 2012

चिंतन ...

जिन्‍दगी छल है 
प्रकृति निश्‍छल 
हम छल से भी लेते हैं और सीखते हैं, 
निश्‍छल से भी लेते हैं और सीखते हैं .. 
फिर हम प्रयोगवादी आदर्शवादी बन जाते हैं 
हम लेते हुए काट-छांट करने लगते हैं 
छल से देना स्‍वीकार नहीं होता 
कृत्रिम निश्‍छलता से बस अपने फायदे का लेखा-जोखा करते हैं 
और समाज सुधारक - विचारक बन जाते हैं   !

- रश्मि प्रभा

बुधवार, 1 अगस्त 2012

आलोचना करना बहुत आसान है, प्रशंसा करने के लिए जि़गर होना चाहिए ... 

- रश्मि प्रभा

सोमवार, 30 जुलाई 2012

बुद्धि, विवेक के साथ क्रोधयुक्‍त जिद हो तो ... तो होनी काहू बिधि न टरै 

- रश्मि प्रभा

शुक्रवार, 27 जुलाई 2012

  • सत्‍य को कोई सह नहीं पाता - झूठ की बैसाखियों पर चलने वाले पांव इतने लाचार होते हैं कि यथार्थ की धरती पर खड़े नहीं हो सकते, जो सच सामने आता है, उसके पीछे कई सच होते हैं - जिनको न कोई सामने लाना चाहता है, न कोई सुनना चाहता है, अपनी डफली अपना राग उत्‍तम है.

          - रश्मि प्रभा 


बुधवार, 25 जुलाई 2012

  • कोई शुरूआत जब गलती से हो तो समझाने से बेहतर है
      आप सामनेवाले की बात सुनें
      उसके क्रोध को भी स्‍वीकार करें - तब अनचाहा नहीं होता 

        - रश्मि प्रभा

सोमवार, 16 अप्रैल 2012

प्रेम में ही ...

प्रेम है प्रभु या प्रभु है प्रेम में
प्रेम में ही ज्ञान है प्रेम में ही सार है
समर्पण मुक्ति है .......

- रश्मि प्रभा 

सोमवार, 9 अप्रैल 2012

चाटुकारिता का तर्पण ....

जिसकी आत्मा मरी होती है
उसके विरुद्ध कोई समाज परिवार नहीं होता
बल्कि सभी मरी आत्मा के साथ चलने लगते हैं
चाटुकारिता का तर्पण अर्पण करते हैं

- रश्मि प्रभा

सोमवार, 2 अप्रैल 2012

मंथन हर पहलू का ...

आत्मचिंतन यानि अपने भीतर मंथन हर पहलू का ...
और मंथन के लिए जगह ही नहीं !

 - रश्मि प्रभा

गुरुवार, 29 मार्च 2012

प्रेम , ख्याल , इंतज़ार

क्रोध सबकुछ ख़त्म कर देता है - 
प्रेम , ख्याल , इंतज़ार ..... चेहरे की मुस्कान

- रश्मि प्रभा

शनिवार, 24 मार्च 2012

गंगा बनते लोग ....

बाह्य परिवेश में गंगा बनते लोग 
व्यक्तिगत रूप में फल्गु होते हैं या ज्वालामुखी ...
- रश्मि प्रभा

मंगलवार, 20 मार्च 2012

अनुभवों की पैनी धार

अनुभवों की पैनी धार ही बरगद को खड़ा करती है
चिड़िया चोंच मारे पथिक उठकर चल दें
अस्तित्व बरगद का कभी मिटता नहीं है .... 

- रश्मि प्रभा

मंगलवार, 13 मार्च 2012

सपने जीने का हौसला ...

सपने जीने का हौसला होना और 
सपनों का हकीकत में बदलना ज़रूरी नहीं ...

- रश्मि प्रभा


सोमवार, 5 मार्च 2012

हल्का फासला ...

फख्र होने और टूटने में 
बहुत हल्का फासला होता है ...

रश्मि प्रभा 

गुरुवार, 1 मार्च 2012

खुद को सुकून देते हो या उसे ..

खुश होने के कारण तो अपने पास होते हैं 
सामनेवाला ( अधिकांशतः ) आंसू देखने में सुकून पाता है 
अब फैसला तुम्हारे हाथ है 
खुद को सुकून देते हो या उसे ..

- रश्मि प्रभा 


शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2012

नियति नहीं - तुम दोषी हो ...!!!

क्षमता हो , सच्ची लगन हो तो तुम्हें आगे बढ़ने से कोई रोक ही नहीं सकता 
पर यदि निराशा गहन हो जाए 
दूसरे का उपहास हिम्मत तोड़ जाए 
तो नियति नहीं - तुम दोषी हो 
 
- रश्मि प्रभा 

शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2012

कुँए में पनपती सोच .....

कुँए को नियति बना जो दुनियादारी दिखाते हैं , वे किसी को नहीं समझते 
क्योंकि उनकी सोच कुँए तक ही होती है 
पर जो कुँए से बाहर निकल गहरी सांस लेते हैं 
उनको पता होता है कुँए में पनपती सोच कैसी होती है !
 
- रश्मि प्रभा 

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012

कठिनाईयों से डर कैसा ?

कठिनाई ना हो तो मकसद ना हो
मकसद ना हो तो रास्‍ते नहीं, रास्‍ते नहीं तो मंजिल नहीं
 .. तो कठिनाईयों से डर कैसा ?

- रश्मि प्रभा 

बुधवार, 1 फ़रवरी 2012

वादा करना रुद्राभिषेक है ....

किसी से वादा करना रुद्राभिषेक है 
शिव का दुग्ध स्नान ...
लोगों ने इसे स्वर्ण मृग बना दिया !
- रश्मि प्रभा 

रविवार, 29 जनवरी 2012

असली नहीं लगते ..

जब हम मुखौटों में जीने लगते हैं, 
तो असली चेहरे भी असली नहीं लगते ...

- रश्मि प्रभा

सोमवार, 23 जनवरी 2012

चिंगारी से कम नहीं ...

कभी शब्‍द छोटे-छोटे नज़र आते हैं,
पर इनके मायने 
राख के ढेर में दबी चिंगारी से कम नहीं ...

- रश्मि प्रभा 

शुक्रवार, 20 जनवरी 2012

सब गुरू बन जाते हैं ....

हत्‍या चोरी झूठ की परिभाषा सब जानते हैं, 
चश्‍मदीद गवाह बदल जाते हैं 
पर किसी मासूम की भूख से बेपरवाह
सब गुरू बन जाते हैं ....
- रश्मि प्रभा 

बुधवार, 18 जनवरी 2012

अपनी नज़र ...

यदि अपनी नज़र में सही होना था, 
तो हम आपके अपने कभी नहीं होते ..
- रश्मि प्रभा 

सोमवार, 16 जनवरी 2012

सबकी अपनी सोच ....

जीवन का कोई भी पक्ष हो, सबकी अपनी सोच होती है,
व्‍याख्‍या करो तो कुछ न कुछ सार निकल ही आएगा, 
क्‍योंकि व्‍याख्‍या भी तो अपनी-अपनी होती है..... 

- रश्मि प्रभा 

शुक्रवार, 13 जनवरी 2012

झूठ के पेड़ पर सत्य के फल ...

सत्य कड़वा तब होता है 
जब बुनियाद झूठ की हो 
अचानक झूठ के पेड़ पर 
सत्य के फल आ जाएँ 
तो वह अपना स्वभाव नहीं छोड़ता 
सर्प विष में पगा मीठा फल विषैला ही होता है ...
 - रश्मि प्रभा 

बुधवार, 11 जनवरी 2012

वह अमृत होगा ...

सत्य को जितना तरशोगे 
तुम्हारे भीतर का अँधेरा उतना ही कोसों दूर होगा 
तुम जो भी अपने हाथ से दोगे 
वह अमृत होगा -

- रश्मि प्रभा 

सोमवार, 9 जनवरी 2012

तुम सत्‍य बोलो ..... !!!

सत्‍य कड़वा होता है 
पर नीम के पत्‍ते सा असर करता है, 
बस ज़रूरी है कि तुम सत्‍य बोलो ..... !!!

- रश्मि प्रभा

शुक्रवार, 6 जनवरी 2012

इश्क का नशा ...


इश्‍क का नशा किसी भी नशे से बढ़कर चढ़ता है, 
कितना भी निम्‍बू इमली खिलाओ, 
नशा उतरता नहीं  ....!!!
 
- रश्मि प्रभा 

बुधवार, 4 जनवरी 2012

भूखे पेट भी ....!!!

रात में जब नींद नहीं आती तो भी सुबह हो जाती है , 
भूखे पेट भी नींद आ ही जाती है - 
गिरकर , उठकर आदमी साँसों को जी ही लेता है .!!!
- रश्मि प्रभा

सोमवार, 2 जनवरी 2012

अहम् प्रबल हो तो ...!!!

मिनटों में गिले शिकवे दूर करने के लिए...
अपनी गलतियों को स्वीकार करना चाहिए तभी खाई मिटती है - 
अहम् प्रबल हो तो सब व्यर्थ है  , क्योंकि तब सिर्फ झूठी सफाई होती है !
 
- रश्मि प्रभा