बुधवार, 29 अगस्त 2012

चितन ...

संत, धर्मात्मा .... उनके जीने की राह , उनका आशीष -
दिखावा , ईर्ष्या, कटुता , छल , हिंसा ,
भौतिकता की चमक दमक से दूर करता है
जो खुद लिप्त है - वह ज्ञानी हो सकता है ,
पर संत धर्मात्मा नहीं
और उसके अनुयायी तो ढकोसले से बढ़कर कुछ नहीं !!!
- रश्मि प्रभा 

सोमवार, 27 अगस्त 2012

चिंतन ...

बचाव में जो हाथ या हथियार उठते हैं वह हिंसा नहीं होती , वह बस बचाव है.... पर अपशब्द .... वह एक गलित मानसिक हिंसा है , जिसे बचाव के उद्देश्य से भी नहीं करना चाहिए ! 

- रश्मि प्रभा 

शनिवार, 25 अगस्त 2012

चिंतन ...

जब सोच की आंखे बरसने लगती हैं, सिसकियों से शब्‍द निकलते हैं तो लोग उसे कविता कहते हैं .. कभी प्‍यार आंखों को बोझिल कर देता है और होठों पर बेवक्‍़त की मुस्‍कान पन्‍नों पर शक्‍ल लेती है तो लोग उसे कविता कहते हैं ...  जो भी कहो दिल को छू जाए और लोरी बन जाए, कुछ पल का सुकून बन जाए - उन शब्‍दों को खुदा कहते हैं .

-रश्मि प्रभा

गुरुवार, 23 अगस्त 2012

चिंतन ...

मेरी ख़ामोशी ने 
तिल को ताड़ बना दिया 

चलनी ने सूप को निशाना बना लिया !

भयानक बेवाई की तकलीफ से सब गुजरे 

नस चढ़ने की वजह से 

मेरी चाल लड़खड़ाई 

तो सबके मुंह प्रश्नों से भर गए ...

विप्पति में क्या मुझे ही पहचान देनी थी 

या पहचान उनकी भी ज़रूरी थी 

ख़ुशी हो या दुःख 

अपनों की पहचान हो ही जाती है 

मुंह में राम और बगल में छुरी हो 

तो नज़रें बार बार धोखा नहीं खातीं !

- रश्मि प्रभा 

मंगलवार, 21 अगस्त 2012

चिंतन ...

कोई भी व्‍यक्ति सिर्फ वह नहीं होता जो रंगमंच पर उतरता है,
अनुरोध पर गानेवाला ज़रूरी नहीं कि उस वक्‍़त गाने की स्थिति में हो ... 
इसे समझनेवाले बिरले होते हैं 

- रश्मि प्रभा

शनिवार, 18 अगस्त 2012

चिंतन ...

जाने सच किस कोने में बैठा है होठों पर पपड़ी लिए, 
झूठ की मशालें इतनी जला दी गईं कि सच के फ़फोले डराने लगे ... 

- रश्मि प्रभा 

गुरुवार, 16 अगस्त 2012

चिंतन ...

प्रश्‍न कई सोच देते हैं ...  बनाये गए उत्तर तो सब जानते है, 
पर उन बने बनाये उत्तरों से परे भी कोई पहलू होता है ...

- रश्मि प्रभा

सोमवार, 13 अगस्त 2012

चिंतन ...

दिल के घुप्प रास्ते निर्णायक दिशा देते हैं ... 

- रश्मि प्रभा 

गुरुवार, 9 अगस्त 2012

चिंतन ...

मलबों के ढेर से कई अनुभव निकलते हैं और स्‍याह सन्‍नाटों में आकार लेते हैं ...

- रश्मि प्रभा

सोमवार, 6 अगस्त 2012

चिंतन ...

गुना़ह तो जनसंख्‍या की तरह बढ़ते हैं और सुकर्म बेटियों की तरह कभी भी कहीं भी खत्‍म कर दिए जाते हैं ... क्‍या हिसाब ! और क्‍या किताब !

- रश्मि प्रभा

शुक्रवार, 3 अगस्त 2012

चिंतन ...

जिन्‍दगी छल है 
प्रकृति निश्‍छल 
हम छल से भी लेते हैं और सीखते हैं, 
निश्‍छल से भी लेते हैं और सीखते हैं .. 
फिर हम प्रयोगवादी आदर्शवादी बन जाते हैं 
हम लेते हुए काट-छांट करने लगते हैं 
छल से देना स्‍वीकार नहीं होता 
कृत्रिम निश्‍छलता से बस अपने फायदे का लेखा-जोखा करते हैं 
और समाज सुधारक - विचारक बन जाते हैं   !

- रश्मि प्रभा

बुधवार, 1 अगस्त 2012

आलोचना करना बहुत आसान है, प्रशंसा करने के लिए जि़गर होना चाहिए ... 

- रश्मि प्रभा