मैंने तो संस्कारों की सलाइयों पर प्रेम के फंदे डाले
- रश्मि प्रभा
तुम्हारे सवालों के व्यर्थ घेरे में जवाब देते-ढूंढते
मैंने जीवन को उधेड़ना बुनना सीख लिया
अब प्रेम क्या
भय कैसा
बुने हुए अनुभवों का सुकून है
जिसे ओढ़ कभी हो जाती हूँ खामोश
कभी सिहरन को रोक लेती हूँ
कभी सिरहाना बना गहरी नींद ले लेती हूँ सपनों की
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अनजाने तुमने मुझे कुशल बुनकर बनाया
और मैं -------- जीने लगी - रश्मि प्रभा