सोमवार, 28 मार्च 2011

प्रेम में प्राप्‍य ...

प्रेम में प्राप्य की आशा मत करो
ऐसा करते ही प्रेम घृणा में बदल जाता है ... !!


- रश्मि प्रभा

9 टिप्‍पणियां:

  1. ह्म्म्म... thank you so much...
    आज एक ऐसी सीख की बहुत जरूरत थी...

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  2. Very True Maa...

    Prem Vyaapar nahi.. Jismain len den ho...
    Pyaarbas Pyaar hai... jo baatne per ek ajeeb aseem khusi hoti hai, Cant discribe it... Shayad yeh anubhuti bahut logo ko hoti hi hongi so they can understand [:)]...ILu..!

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  3. तभी तो प्रेम पाने का नाम है ही नहीं ! फिर भी ना मिलकर बहुत कुछ मिल जाता है !

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  4. प्रेम सिर्फ अनुभूति है और उसको सिर्फ अनुभूत किया जा सकता है. जो पाया जाता है वह अव्यक्त होता है और फिर भौतिक वस्तु पाना प्रेम से इतर हो जाता है.

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यह प्रेरक विचार आपके प्रोत्‍साहन से एक नये विचार को जन्‍म देगा ..
आपके आगमन का आभार ...सदा द्वारा ...