सोमवार, 15 अक्तूबर 2012

चिंतन ...

न कोई आस्तिक,न नास्तिक-ईश्वर तो दोनों में है
स्वीकारो,नकारो- क्या फर्क पड़ता है 
एक तर्क तो एक कुतर्क 
एक प्राप्य तो दूसरा अप्राप्य का प्रतीक
कारण निर्धारित !

- रश्मि प्रभा 

4 टिप्‍पणियां:

  1. ईश्वर तो जन जन में है .... सुंदर बात कही है ।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सही कहा आपने ..सुन्दर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  3. कहा भी गया है है - ''मानो तो देव नहीं तो पत्थर।'' ''कण-कण में बसे हैं राम'' ईश्वर की अवधारणा की सत्यता समझ से परे है।

    जवाब देंहटाएं

यह प्रेरक विचार आपके प्रोत्‍साहन से एक नये विचार को जन्‍म देगा ..
आपके आगमन का आभार ...सदा द्वारा ...