शुक्रवार, 25 नवंबर 2011

सोच की डोर ....!!!

खुद को किश्तों में मरते देखने से बेहतर है
सोच की डोर ही काट दो ...!!!
 
- रश्मि प्रभा 

6 टिप्‍पणियां:

  1. soch kee dor kabhee nahee kat saktee
    aatmchintan,sabr aatmanveshan aur dhyaan se dishaa parivartit kee jaa saktee hai

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  2. सोच की डोर कटने का तात्पर्य शायद समझ में नहीं आया .... जहाँ हम किश्तों में मर रहे होते हैं , वहाँ से सोच की दिशा बदल देनी चाहिए अन्यथा पूरी बेवजह की सोच लिए हम मर जायेंगे

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  3. सही कहा है आपने वर्ना ये किश्तों की मौत जारी ही रहेगी...

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  4. सबसे अच्छा तरीका है मौत जैसे क्षणों से बाहर आने का !

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