बुधवार, 25 मई 2011

लोहा ....

चोट खाकर कोई अपाहिज हो जाता है
शरीर दिल और दिमाग - तीनों से
पर कोई लोहा बन जाता है ...
तुम पर है चयन !

- रश्मि प्रभा

13 टिप्‍पणियां:

  1. बेशक!!
    चोट ही लोहे को गढती है।

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  2. जो लोहा बन जाता है वही तो जी पाता है|
    सटीक क्षणिका|

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  3. यह तो व्यक्ति की इच्छा-शक्ति और जीवन के प्रति उसके दृष्टिकोण पर निर्भर करता है.सकारात्मक सोच एक अपाहिज में भी हिमालय की चोटी पर चढ़ने का जज्बा पैदा कर देता है.अत्यंत विचारोत्तेजक विचार.

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  4. koi jindgi bhar khada hi nahi ho pata..bas vahi dam tod deta hai...

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यह प्रेरक विचार आपके प्रोत्‍साहन से एक नये विचार को जन्‍म देगा ..
आपके आगमन का आभार ...सदा द्वारा ...