जिन्दगी छल है
प्रकृति निश्छल
हम छल से भी लेते हैं और सीखते हैं,
निश्छल से भी लेते हैं और सीखते हैं ..
फिर हम प्रयोगवादी आदर्शवादी बन जाते हैं
हम लेते हुए काट-छांट करने लगते हैं
छल से देना स्वीकार नहीं होता
कृत्रिम निश्छलता से बस अपने फायदे का लेखा-जोखा करते हैं
और समाज सुधारक - विचारक बन जाते हैं !
सुन्दर |
जवाब देंहटाएंआभार ||
कृत्रिम निश्छलता से बस अपने फायदे का लेखा-जोखा करते हैं
जवाब देंहटाएंऔर समाज सुधारक - विचारक बन जाते हैं !
सच में कई बार समझना मुश्किल होता है और अपनी बुद्धि पर भ्रम होने लगता है !
निश्छल मन की तुलना किसी से नहीं हो सकती |कृत्रिमता का मुखौटा बहुत जल्दी उतर जाता है |
जवाब देंहटाएंआशा
सुंदर
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