गुरुवार, 3 फ़रवरी 2011

'' वसंत ''

अगर तुमने वसंत देखा ही नहीं तो तुम
वसंत
जी कैसे सकते हो, और यदि तुमने
फिर
भी जिया है तो तुम आम इन्‍सान हो
ही नहीं सकते ....!




13 टिप्‍पणियां:

  1. सच तो यह है कि वसंत देखा नहीं जाता,जिया जाता है। जो जीते हैं वे ही उसे देखते हैं।

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  2. यह एक अच्‍छा प्रयास है लेकिन मुझे लगता है कि रश्मि जी को रश्मिदी के दायरे से बाहर निकालकर प्रस्‍तुत करना चाहिए। जब आप दीदी कह देती हैं तो उन्‍हें एक दायरे में बांध देती हैं। इस तरह के आत्‍मचिंतन में भागीदारी के लिए व्‍यक्ति को दायरे से बाहर निकलकर सोचना होता है। इसलिए परिचय में उन्‍हें एक विचारक की तरह ही प्रस्‍तुत करें-रिश्‍ते की तरह नहीं।

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  3. ham bhi rajesh ji ki baat se sahmat hain ..
    basant sab kahan jee paate .. vah toh bheetar hota hai ..

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  4. राजेश जी, आत्‍मचिंतन पर आपके प्रथम आगमन का स्‍वागत है ..और रश्मि दी को आपने विचारक की तरह प्रस्‍तुत करने की सलाह दी थी उसी बात का सम्‍मान करते हुये मैने 'दी' की जगह 'जी' कर दिया है ...उम्‍मीद है आगे भी आप हमें अपने अनुभवों एवं विचारों से प्रेरित करते रहेंगे ...धन्‍यवाद ।

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  5. शुक्रिया सदा जी। आपने मेरी बात पर विचार करके सचमुच आत्‍मचिंतन को आगे बढ़ाया है। इस ब्‍लाग का उद्देश्‍य तभी पूरा होगा,जब यहां आने वाले प्रस्‍तुत विचार पर 'विचार'करते हुए आगे की बात कहेंगे। केवल सुंदर विचार है,प्रेरणास्‍पद है,अनुकरणीय है आदि कहने से यह जहां का तहां रह जाएगा।

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यह प्रेरक विचार आपके प्रोत्‍साहन से एक नये विचार को जन्‍म देगा ..
आपके आगमन का आभार ...सदा द्वारा ...