शनिवार, 22 जून 2013

चिंतन ...

सहनशीलता,विनम्रता,दानवीरता,हर परिस्थिति में खुश रहने की कला भी एक कर्म है,जिसका फल अन्याय के रूप में मिलता है = क्यूँ? क्योंकि अन्याय करनेवाला इस विशिष्टता को खत्म करने के हर हथकंडे अपनाता है .  प्रकृति के साथ खिलवाड़ प्रकृति का कर्म नहीं, प्रकृति मौन भुगतती है ... 
पर,प्रकृति हो या मनुष्य - उसके साथ किये गए अन्याय का प्रतिकर्म उसकी प्रतिध्वनि,स्वतः मुड़ती है -


- रश्मि प्रभा

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही गहन विश्लेषण!!
    सद्कर्मों की अन्याय में प्रतिक्रिया, वस्तुतः सदगुणों को परास्त करने की मनोवृति से उपजती है। किन्तु सद्कर्मों का अन्ततः प्रतिफल सुफल ही होता है।

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  2. न्याय ही टिकता है ....शाश्वत सत्य की तरह ....

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  3. गहन एवं विचारणीय प्रस्तुति । बधाई । सस्नेह

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